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ऋध॑गि॒त्था स मर्त्यः॑ शश॒मे दे॒वता॑तये। यो नू॒नं मि॒त्रावरु॑णाव॒भिष्ट॑यऽआच॒क्रे ह॒व्यदा॑तये ॥८७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऋध॑क्। इ॒त्था। सः। मर्त्यः॑। श॒श॒मे। दे॒वता॑तये॒ इति॑ दे॒वऽता॑तये ॥ यः। नू॒नम्। मि॒त्रावरु॑णौ। अ॒भिष्ट॑ये। आ॒च॒क्रे इत्या॑ऽच॒क्रे। ह॒व्यदा॑तय॒ इति॑ ह॒व्यऽदा॑तये ॥८७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:87


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (देवतातये) विद्वानों वा दिव्यगुणों के लिये (ऋधक्) समृद्धिमान् (मर्त्यः) मनुष्य (अभिष्टये) अभीष्ट सुख की प्राप्ति के अर्थ तथा (हव्यदातये) ग्रहण करने योग्य पदाथों की प्राप्ति के लिये (मित्रावरुणौ) प्राण और उदान के तुल्य राजा प्रजाजनों का (नूनम्) निश्चय (आचक्रे) सेवन करता (सः) वह जन (इत्था) इस उक्त हेतु से (शशमे) शान्त उपद्रवरहित होता है ॥८७ ॥
भावार्थभाषाः - जो शम-दम आदि गुणों से युक्त राजपुरुष और प्रजाजन इष्ट सुख को सिद्धि हेतु के लिये प्रयत्न करें, वे अवश्य समृद्धिमान् होवें ॥८७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ऋधक्) यः समृध्नोति सः (इत्था) अस्माद्धेतोः (सः) (मर्त्यः) मनुष्यः (शशमे) शाम्यति निरुपद्रवो भवति। अत्र एत्वाभ्यासलोपाभावश्छान्दसः। (देवतातये) देवेभ्यो विद्वद्भ्यो दिव्यगुणेभ्यो वा (यः) (नूनम्) निश्चितम्। (मित्रावरुणौ) प्राणोदानाविव राजप्रजाजनौ (अभिष्टये) अभीष्टसुखप्राप्तये (आचक्रे) सेवते। अत्र गन्धनावक्षेपण ॥ (अष्टा०१.३.३२) इति करोतेः सेवनार्थ आत्मनेपदम्। (हव्यदातये) हव्यानामादातुमर्हाणामा-दानाय ॥८७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यो देवतातय ऋधग्मर्त्योऽभिष्टये हव्यदातये च मित्रावरुणौ नूनमाचक्रे स नर इत्था शशमे ॥८७ ॥
भावार्थभाषाः - ये शमदमादिगुणान्विता राजप्रजाजना इष्टसुखसिद्धये प्रयतेरँस्तेऽवश्यं समृद्धिमन्तो भवेयुः ॥८७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे शम, दम इत्यादी गुणांनी युक्त राजपुरुष व प्रजाजन इष्ट सुखाच्या सिद्धीसाठी प्रयत्न करतात त्यांची समृद्धी होते.